गोंड़ जनजाति | Gond Tribes in Hindi

Gond-Tribes

इस पोस्ट मे गोंड़ जनजाति (Gond Tribes Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।


Gond Tribes Overview
जनजाति का नाम गोंड़ जनजाति
उपजाति मुरिया,दंडामी माड़िया, दोरला, दुरवा, परजा, कंडरा, ओझा, अबुझमाड़िया
गोत्र कुर्राम, नेताम, मरकाम, मरावी,भलावी, सर्याम, कारेआम, सिरसाम, उइका, उसेंडी, धुर्वा, परतेती आदि।
निवास स्थान मध्य्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, कोरबा, सरगुजा, बस्तर, राजनांदगांव, दुर्ग, कंधमाल, और बीजापुर आदि जिलों में निवास करते है।
भाषा बोली छत्तीसगढ़ी, गोड़ी, हिंदी
कुल जनसंख्या 65,0000

गोंड जनजाति (Gond Tribes)- गोंड जनजाति भारत की सबसे बड़ी जनजाति है यह विकासशील एवं अति प्राचीन जनजाति है। जिसका उल्लेख प्राचीन काल के रामायण एवं महाभारत में भी हुआ है। गोंड जनजाति मध्यप्रदेश, छत्तीगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा और आंध्रप्रदेश में पायी जाती है। छत्तीसगढ़ में गोंड जनजाति के लोग विभिन्न क्षेत्रों में निवास करते हैं। यह जनजाति छत्तीसगढ़ के कई जिलों में बसी है, जैसे कि रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, कोरबा, सरगुजा, बस्तर, राजनांदगांव, दुर्ग, कंधमाल, और बीजापुर आदि। गोंड जनजाति का मुख्य आबादी केंद्र बस्तर जिले में है, जो कि छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसके अलावा, गोंड जनजाति के लोगों को छत्तीसगढ़ के अन्य उपनगरों और गाँवों में भी देखा जा सकता है। वर्तमान में इसकी कुल जनसंख्या 65 लाख से भी अधिक हो चुकी है। गोंडो की अधिक जनसंख्या हो जाने के कारण ही इसे गोंडवाना कहा जाता था। निवास की दृष्टि से हम गोंडों को दो भागों में बांट सकते है। पहला भाग जो पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले गोंड जिन्हें मारिया (Hill Gonds) कहा जाता है। दूसरा भाग मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले गोंड जिन्हें मुरिया (Plain Gonds) कहते हैं।


गोंड जनजाति का इतिहास (Gond Tribes History):-

गोंड जनजाति बहुत ही प्राचीन जनजाति है। आर. बी. रसेल एवं हीरालाल के अनुसार 13 वी से 19 वी शताब्दी के बीच मध्य्रदेश के दक्षिणी एवं मध्य भागो में बसे हुए थे। ये लोग संभवतः पांचवीं - छठवीं शताब्दी में गोदावरी के तट पकड़कर मध्य भारत के पहाड़ों में फैल गई। छत्तीसगढ़ एवं मंडला क्षेत्रों में भी गोंड़ो का शासन हुआ करता था। 'गढ़ मंडला' के गोंड शासक संग्राम शाह तथा उनके पुत्र दलपत शाह भी इसी क्षेत्रों के प्रसिद्ध शासकों में से एक थे। दलपत शाह ने महोला के चंदेल राजा की पुत्री दुर्गावती से विवाह किया था जो कि रूपवती एवं बहादुर शासीका भी थी। इसने तो मुगल सम्राट अकबर से भी युद्ध किया था। गोंडवाना पर मुगलों एवं मराठों का भी शासन रहा था। गोंड लोगो को परिश्रमी, बहादुर योद्धा माना जाता है।


गोड़ जनजाति की भाषा (Gond Tribes Launguage)

गोड़ जनजाति गोड़ी भाषा बोलते है जिसमे तेलुगू भाषा का प्रयोग हुआ करते है। जिस पर द्रवीण भाषा परिवार की तेलुगू भाषा का प्रभाव है। ग्रियर्शन (Grierson) का मत है कि इनकी भाषा मे गोड़ी भाषा पर तमिल एवं कन्नड भाषा का प्रभाव पड़ा।


गोड़ जनजाति के वस्त्र एवं आभूषण (Gond Tribes Costume):-

पहाड़ी एवं पर्वती क्षेत्रो मे निवास करने वाले गोड़ प्रजाति बहुत कम कपड़े पहनते है। यहा तक कुछ समय पहले ही ये लोग पत्तों एवं छालों को पहनते थे। इसमे पुरुष वर्ग केवल एक लंगोटी पहनता है और गोड़ स्त्रिया लुंगड़ी साड़ी पहनती है। मैदानी क्षेत्रो मे बसे गोड़ आधुनिकता के संपर्क मे आ जाने के कारण नवीन प्रकार के वस्त्र एवं गहने पहनते है। गोड़ स्त्रिया अपने शरीर पर गोदना गुदवाती है। जो इनकी पहचान एवं सुंदरता की प्रतीक है।


खान-पान (God Tribes Food):-

गोड़ जनजाति के लोग खाने मे सुबह एवं दोपहर को कोदो कुटकी या बाजरे का पेज बनाकर खाया करते है। तथा शाम को ये लोग चावल, सब्जी, ज्वार एवं गेंहू की रोटी खाते है। कठिनाइयो के दिनो मे ये लोग महुआ के फूल व जंगली कंद-मूल, फल से अपना पेट भरते है। सर. आर. जेनकिंस के अनुसार, वे नंगे रहते है तथा जड़ो, फलो एवं शिकार पर निर्भर रहते है। महुआ खजूर एवं चावल की शराब पीते है। बीड़ी एवं सिगरेट का भी सेवन करते है। बस्तर जिलो मे निवास करने वाली जनजाति चूहो तथा चितों को भी खाते है।


गोंड़ जनजातियो की कृषि (Gond Tribes Agriculture):-

गोंड समुदाय परंपरागत खेती करते हैं, जो मानसून पर निर्भर होती है। वे मुख्य रूप से धान की खेती करते हैं, जो छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल है। इसके अलावा दालों की भी खेती करते हैं। गोंड लोग मिश्रित खेती का भी अभ्यास करते हैं, जिसमें वे एक ही खेत में कई प्रकार की फ़सलें उगाते हैं। गोड़ जनजाति की प्रमुख व्यवसाय कृषि है। ये लोग स्थानांतरित कृषि करते है। इनकी कृषि को पेंदा कहा जाता है। ये लोग कृषि करने के लिए जंगल मे आग लगा दिया करते है और जब वर्षा होती है, तो उसमे बीज छिड़ककर वह पर खेती की जाती है। और उसके बाद उस भूमि के बंजर हो जाने पर दूसरे जगह चले जाते है। यही क्रिया आगे चलती रहती है। ये लोग ज्वार, मक्का, चावल, गेहू, कोदो, कुटकी, सन, कपास एवं तिलहन आदि फसलों की खेती करते है। इन लोगो की जंगल पर निर्भरता के कारण जंगल को विशेष आदर व सम्मान देते है।


पशुपालन (Gond Tribes Animals Husbandry):-

गोंड जनजातियो द्वारा पशुपालन भी किया जाता है। ये लोग गाय, भैस, भेड़, बकरी, सूअर एवं मुर्गी का पालन करते है। क्योकि इनकी संपर्कता बाहरी लोगो से कम होने के कारण ये लोग पशुपालन अधिक करते है।


गोंड जनजाति के प्रमुख लोकगीत एवं लोकनृत्य (God Tribes Folk Song and Dance):-

गोंड की उपजाति परधान, किन्नरी बजाकर, लोकगीत गाकर एवं ओझा गोंड डहकी बजाकर महादेव का लोकगीत गाकर अन्य गोंड जनजाति के पास घर-घर जा कर भिक्षा मांगते है।

गोंड़ जनजाति में कई प्रकार के लोकगीत गाये जाते है|

रिलो गीत - यह गीत विवाह के अवसर पर गाया जाता है|

छेरता गीत - छेरछेरा के अवसर पर गाया जाता है|

तारा गीत - पूस माह की चांदनी रात में पिकनिक के दौरान युवतियाँ दीप जला कर इस गीत को गाती है|


गोंड़ जनजाति के प्रमुख लोकनृत्य

कर्मा नृत्य - जीवन में कर्म की प्रधानता को बताने हेतु फसल रोपाई के पश्चात् एवं फसल कटाई के पश्चात् किया जाता है|

सौला नृत्य - यह नृत्य अपने अराध्य देव (आदिदेव) को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, यह नृत्य स्त्री - पुरुष दोनों के द्वारा किया जाता है|

फाग नृत्य - यह नृत्य मुखौटा पहन कर किया जाता है|


गोंड़ जनजाति के प्रमुख देवी-देवता (Lord of Gond Tribes):-

गोंड़ जनजाति के प्रमुख देवी-देवता दुल्हादेव, बुढ़ादेव, ठाकुरदेव, बढ़ीमाई, बड़ापेन, आंगादेव, दंतेश्वरीमाई, नागदेव, नारायणदेव आदि है। इस जनजाति में परलौकिक शक्ति व आत्मावाद के रूप में बोंगादेव को मानते है। इन लोगो मे अपनी देवी देवताओ के प्रति अखण्ड विश्वास होती है।


गोंड़ जनजाति के प्रमुख त्योहार(Festival of Gond Tribes):-

गोंड़ जनजाति के लोग हरेली, पोला, होली, नवाखानी, दशहरा और दीपावली आदि त्योहार मनाते है।


गोंड़ जनजातियो मे विवाह संस्कार (Wedding Ceremony):-

इस जनजाति (God janjati in Hindi) मे कई प्रकार के विवाह प्रचलित है-

दूध लौटाव विवाह – इस विवाह में अपने मामा या फूफा के लड़के या लड़की से शादी करते है।

हल्दी सींचना –इस विवाह में लड़के और लड़की घर वालो की अनुमति न होने पर घर से भाग कर शादी करते है।

चूड़ी पहनना – इस विवाह में लड़की के पति के मरणोपरांत लड़की के देवर से उसकी शादी कर दी जाती है।

लमसेना विवाह (सेवा विवाह)- इस विवाह में वर अपने सास ससुर के घर जाकर रहते है एवं उनकी सेवा करते है उसके पश्चात दोनों की विवाह कर दी जाती है।

पठौनी विवाह – इस विवाह में वधु वर के घर बारात लेकर जाते है जिसमे वर पक्ष के द्वारा वधु के घर वालो को दाल, चांवल और बर्तन भेट स्वरुप दिया जाता है।

चढ़ विवाह – इस विवाह में वर वधु के घर बारात लेकर जाता है जिसमे वधु पक्ष के द्वारा वर के घर वालो को दाल, चांवल और बर्तन भेट स्वरुप दिया जाता है।


महत्वपूर्ण बिन्दु (Important Point about Gond Tribes):-

  1. छत्तीसगढ़ के गोंड़ जनजाति की बोली गोंडी एवं कोयतुर है।
  2. बस्तर, दंतेवाड़ा में ककसार नृत्य तथा कवर्धा, रायपुर, बिलासपुर और सरगुजा की महिलाएं सुवा नृत्य करती है।
  3. गोंड़ जनजातियों में मेहमानों के रहने के लिए अलग से घर होते है जिसे बरोठा कहते है।
  4. गोंड़ जनजाति की मे वर्तमान मे लगभग 41 उपजातियाँ हैं।
  5. गोंड जनजाति के अबूझमाड़िया तथा दंडामी माड़िया उपजाति पेंदा कृषि करते थे।
  6. पहाड़ी मडिया आज भी स्थानांतरित कृषि करते हैं जिसे स्थानीय भाषा में धारिया या बेवार कृषि कहते है।
  7. इसकी कंडरा उपजाति बाँस के बर्तन बनाती हैं।
  8. इनमे पंचायत प्रमुख को राजा कहा जाता हैं।
  9. झाड़फूंक एवं तंत्र-मन्त्र के जानकार को भूमका या बैगा कहते हैं।
  10. इनके मृत्यु संस्कार के तीसरे दिन को कोज्जी एवं दसवे दिन को कुंडा मिलान कहा जाता हैं।
  11. गोंड़ जनजाति की उपजाति ओझा गोदना गोदने वाली जनजाति के नाम से जानी जाती हैं।
  12. जोर्ज ग्रियर्शन के द्वारा गोड़ो पर 'द गोंड्स ऑफ बस्तर' नामक पुस्तक लिखी गयी हैं।

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